आज मेरी आत्मा ने मुझसे बातें की
हरिहरन एयर
आज मेरी आत्मा ने मुझसे बातें की
पूचा कि कैसा हूँ मैं
पर मैं अपने ही अंदर की आवाज़ को पहचान नहीं पाया
लेकिन जब दिल के दरवाज़े पर फिर से मेरी आत्मा ने खटखटाया
तब मेरे कान ने उस आवाज़ को पहचान लिया
जिसके साथ सदियों पहले मैं गुफ्तगू किया करता था
मैंने हडबड़ाकर जवाब दिया, हाँ मैं ठीक हूँ, आप कैसे हैँ?
आत्मा हंसकर बोले, आप कैसे हैँ? अछ्छी बात है, मुझको भूल गए पर अदब नहीं भूले हो
मैंने कहा, हाँ अदब तो नहीं भूला, पर अपने आप को खो दिया है मैंने
आत्मा ने कहा, मैं तो तुम्हें इतने ही ज़ोर से कई महीनों से पुकार रहा हूँ, आज कैसे सुन लिया?
मैं हसंकर बोला, बाहर की दुनिया का आवाज़ जो बंध है, घर पर ही बैठा हूँ
आत्मा फिर बोले, हाँ तुम लोग तो ऐसे ही हो
जब तक वायरस तुम्हें धमकी न दें, कहाँ सुधरने वाले हो!
दो पल रोज़ हमसे भी मुलाक़ात करो
थोड़ा ध्यान करो
परिवार के सात प्यार बांटो, सिर्फ ज़िम्मेदारी मत निभाओ
अपने आप से जुडो, खुद से बातें करो....
मैंने आत्मा को टोका, और बोला
आपका क्या है - न कोई इच्छा न कोई बंधन
झेलना दौड़ना तो हमें है
पैसे के पीछे, प्रमोशन के पीछे, बच्चों के पीछे, भविष्य के पीछे....
अब आत्मा ने मुझे टोका
मुझे क्यों कोसते हो
तुम और मैं एक हैं - ये तुम जानते हो
फिर भी अनजान बनाते हो
मैंने फिर से टोका
ओह! आत्मा अब रहने भी दो मैं कौन हूँ वाला सत्संग
बस कुछ ही दिनों की बात है
फिर से मैं अपनी आदत भरी ज़िन्दगी में लौट जाऊँगा
ट्रैफिक की आवाज़ में फिर से आपको न सुन पाऊंगा
इस शोर में समा जाऊँगा
और भागता भागता थक जाऊँगा
पर आपको पुकार नहीं पाउंगा
बस फिर एक बार मैं विजयी हुआ
अपने आत्मा को उनका जगह दिखा दिया
फिर एक बार जो मैं हूँ उसी को अपने से दूर कर दिया
वायरस हमारी ज़िन्दगी को थमा तो सकता है
पर हमारी नासमझी को कौन ठीक क़र सकता है
हरिहरन एयर
आज मेरी आत्मा ने मुझसे बातें की
पूचा कि कैसा हूँ मैं
पर मैं अपने ही अंदर की आवाज़ को पहचान नहीं पाया
लेकिन जब दिल के दरवाज़े पर फिर से मेरी आत्मा ने खटखटाया
तब मेरे कान ने उस आवाज़ को पहचान लिया
जिसके साथ सदियों पहले मैं गुफ्तगू किया करता था
मैंने हडबड़ाकर जवाब दिया, हाँ मैं ठीक हूँ, आप कैसे हैँ?
आत्मा हंसकर बोले, आप कैसे हैँ? अछ्छी बात है, मुझको भूल गए पर अदब नहीं भूले हो
मैंने कहा, हाँ अदब तो नहीं भूला, पर अपने आप को खो दिया है मैंने
आत्मा ने कहा, मैं तो तुम्हें इतने ही ज़ोर से कई महीनों से पुकार रहा हूँ, आज कैसे सुन लिया?
मैं हसंकर बोला, बाहर की दुनिया का आवाज़ जो बंध है, घर पर ही बैठा हूँ
आत्मा फिर बोले, हाँ तुम लोग तो ऐसे ही हो
जब तक वायरस तुम्हें धमकी न दें, कहाँ सुधरने वाले हो!
दो पल रोज़ हमसे भी मुलाक़ात करो
थोड़ा ध्यान करो
परिवार के सात प्यार बांटो, सिर्फ ज़िम्मेदारी मत निभाओ
अपने आप से जुडो, खुद से बातें करो....
मैंने आत्मा को टोका, और बोला
आपका क्या है - न कोई इच्छा न कोई बंधन
झेलना दौड़ना तो हमें है
पैसे के पीछे, प्रमोशन के पीछे, बच्चों के पीछे, भविष्य के पीछे....
अब आत्मा ने मुझे टोका
मुझे क्यों कोसते हो
तुम और मैं एक हैं - ये तुम जानते हो
फिर भी अनजान बनाते हो
मैंने फिर से टोका
ओह! आत्मा अब रहने भी दो मैं कौन हूँ वाला सत्संग
बस कुछ ही दिनों की बात है
फिर से मैं अपनी आदत भरी ज़िन्दगी में लौट जाऊँगा
ट्रैफिक की आवाज़ में फिर से आपको न सुन पाऊंगा
इस शोर में समा जाऊँगा
और भागता भागता थक जाऊँगा
पर आपको पुकार नहीं पाउंगा
बस फिर एक बार मैं विजयी हुआ
अपने आत्मा को उनका जगह दिखा दिया
फिर एक बार जो मैं हूँ उसी को अपने से दूर कर दिया
वायरस हमारी ज़िन्दगी को थमा तो सकता है
पर हमारी नासमझी को कौन ठीक क़र सकता है
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