तुम दूर ही अच्छी लगती हो
तुम दूर ही अच्छी लगती हो
पास बुलाने से घबराता हूँ
कहीं तुम्हारे ज़ुल्फ़ बिखर न जाये
कहीं होंट फिसल न जाए
कहीं कदम डगमगा न जाए
कहीं आंखें धोखा न खा जाए
कहीं मोहब्बत ढल न जाए
कहीं दिल बेकरार न हो जाए
कहीं कोई ऊंच नीच न हो जाए
कहीं जिंदगी के फैसले न
बदल जाए
कहीं मन विचलित न हो जाए
कहीं एकाग्रता न खो जाए
कहीं हाथ थामकर रास्ता भटक न जाए
कहीं तुम्हें दूर से ताकने का अवसर न खो जाए
सच में, तुम दूर ही अच्छी लगती हो
पास बुलाने से घबराता हूँ