सोमवार, 25 मार्च 2024

तुम दूर ही अच्छी लगती हो

तुम दूर ही अच्छी लगती हो


तुम दूर ही अच्छी लगती हो

पास बुलाने से घबराता हूँ


कहीं तुम्हारे ज़ुल्फ़ बिखर न जाये

कहीं होंट फिसल न जाए
कहीं कदम डगमगा न जाए
कहीं आंखें धोखा न खा जाए
कहीं मोहब्बत ढल न जाए

कहीं दिल बेकरार न हो जाए

कहीं कोई ऊंच नीच न हो जाए

कहीं जिंदगी के फैसले न बदल जाए

कहीं मन विचलित न हो जाए

कहीं एकाग्रता न खो जाए

कहीं हाथ थामकर रास्ता भटक न जाए
कहीं तुम्हें दूर से ताकने का अवसर न खो जाए

सच में, तुम दूर ही अच्छी लगती हो

पास बुलाने से घबराता हूँ